लेखनी-कविता- मैं पीता हूँ -18-Feb-2022
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✍🏻 मैं पीता हूँ✍🏻
मैं पीता हूँ
पीता ही जाऊँगा,
जाम पर जाम आज,
मंदिर नहीं मस्जिद नहीं
मैं बैठा हूं मयखानों में आज,
जिंदगी के बुरे वक्त में
इन मंदिर मस्जिदों ने
कहां साथ निभाया ?
साथ दिया तो बस
इस मेरे बदनाम मयखाने,
कौन रोकेगा कौन टोंकेगा
मुझे पीने से.....?
सुंदरी नहीं तो क्या ?
शराब है मेरे पास ?
इस बुरे वक्त के दौर में
भुलाने का सही सामान तो है मेरे पास,
सहारा शराब का ही तो
काम आया है बुरे वक्त में रास,
चाहे पूरी जिंदगी में हजारों गम गुजरेंगे
चलती रहेगी जब तक यह सांस,
बेहोशी का
यह आलम ही तो बचा है मेरे पास,
अब छोड़ भी दूं
पीने को तो ........!
गमों के कफन में
लिपटी होगी मेरी लाश !!
✍️ वैष्णव चेतन "चिंगारी' ✍️
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
राजस्थान
09/04/020
स्वरचित मेरी रचना